देव और वेद भाषा संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। देववाणी संस्कृत को उसका प्राचीन वैभव दिलाने के लिए माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की सरकार ने संस्कृत विद्यालयों/महाविद्यालयों की सुध ली। पिछले 24 वर्षों से उपेक्षा का शिकार हो रहे संस्कृति विद्यालय और महाविद्यालयों के विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति बढ़ाई है। इसी तरह 17 साल बाद योगी सरकार ने नये संस्कृत माध्यमिक विद्यालयों को मान्यता देना शुरू किया था। वहीं सरकारी और सहायता प्राप्त संस्कृत माध्यम स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 6-8 के छात्रों के लिए मुफ्त पाठ्य पुस्तकों और मध्याह्न भोजन की व्यवस्था भी योगी सरकार में ही शुरू की गई है। पहले, राज्य में केवल दो सरकारी संस्कृत माध्यम स्कूल थे। लेकिन योगी सरकार ने 15 नये आवासीय संस्कृत माध्यम विद्यालय स्थापित किये। प्रदेश के 900 सहायता प्राप्त संस्कृत माध्यमिक विद्यालयों के विकास, विस्तार एवं बुनियादी ढांचे के सुदृढ़ीकरण के लिए पहली बार 100 करोड़ ₹ की धनराशि योगी सरकार ने बजट में स्वीकृत की है। योगीराज में संस्कृत शिक्षा को मिला प्रोत्साहन संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने वाले ज्यादातर छात्र और छात्राएं निर्धन परिवारों की पृष्ठभूमि से होते हैं। इसलिए संस्कृत शिक्षा के अंतर्गत प्रथमा कक्षा 6,7 और 8 के छात्रों को छात्रवृत्ति दिए जाने की व्यवस्था की गई है। 6 और 7 कक्षा के बच्चों को पहले छात्रवृत्ति दिए जाने की कोई व्यवस्था नहीं थी, लेकिन अब आदरणीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के निर्देश पर सरकार ने उन्हें भी छात्रवृत्ति प्रदान करने का निर्णय लिया है। पूर्व में छात्रवृत्ति के लिए 50 हजार ₹ वार्षिक आय वाले ही पात्र होते थे लेकिन अब इस शर्त को हटा दिया गया है। अब इसमें किसी प्रकार का कोई भी व्यक्ति चाहे किसी आय वर्ग का हो, अगर वो संस्कृत का विद्यार्थी बनेगा तो उसे छात्रवृत्ति का लाभ मिलेगा। योगी सरकार के कार्यकाल में यूपी में संस्कृत के प्रचार-प्रसार के साथ संस्कृत को जन-जन तक पहुंचाने और बोलचाल की भाषा के रूप में विकसित करने के बड़े प्रयास किये हैं। विश्व की सबसे प्राचीन भाषा और समस्त भारतीय भाषाओं की जननी कही जाने वाली ‘संस्कृत’ को योगी सरकार में सम्मान मिला है। इससे पहले पूर्व की सरकारों ने कभी भी संस्कृत को आगे बढ़ाने के प्रयास नहीं किये। संस्कृत के नाम पर अकादमी और संस्थान तो चले लेकिन उनको आगे बढ़ाने के लिए कभी भी ठोस और प्रभावी योजनाएं नहीं बनी। जिसकी वजह से संस्कृत लोकप्रिय भाषा के रूप में स्थापित नहीं हो पाई। योगीराज में हुआ उप्र माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद का पुनर्गठन करीब 16 साल बाद वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी के निर्देश पर उप्र माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद का पुनर्गठन किया गया। निदेशक माध्यमिक शिक्षा को परिषद का अध्यक्ष बनाया गया है। इसमें अध्यक्ष समेत 28 सदस्य होंगे। संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2000 में पहले यूपी संस्कृत बोर्ड का गठन किया गया था लेकिन केवल कहने के लिए बोर्ड के नाम पर संचालित हो रहा था। आलम यह था कि परिषद से सम्बद्ध संस्कृत विद्यालयों का कहीं कोई ऑनलाइन रिकॉर्ड तक मौजूद नहीं था। यहीं नहीं परिषद के कई एडेड स्कूल ऐसे हैं, जिनके पास अपने भवन और शिक्षक तक नहीं थे। पिछले सात वर्षों में योगी सरकार ने ना केवल बोर्ड का पुनर्गठन किया बल्कि सभी संस्कृत विद्यालयों को ऑनलाइन किया और एकरूपता स्थापित की। मिस्ड कॉल कर सीखे संस्कृत भाषा उत्तर प्रदेश में संस्कृत भाषा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध योगी आदित्यनाथ सरकार के निर्देश पर संस्कृत संस्थान की मिस्ड कॉल योजना से लोगों को जोड़ा। इस मिस्ड कॉल योजना के तहत 10,000 से अधिक लोगों को सरल संस्कृत सिखाई जा चुकी है। प्रदेश के ये लोग जो भाषा नहीं समझते थे, अब दैनिक उपयोगी बातें संस्कृत में बोल रहे हैं। सरकार के इस कदम से प्रदेशवासियों की संस्कृत के प्रति रुचि बढ़ रही है, वहीं संस्कृत सीखने वालों की नामांकन संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है। प्रथम स्तरीय संस्कृत भाषा शिक्षण के लिए कुल 17,480 लोगों का पंजीकरण हुआ, जिनमें से 132 ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से 6,434 लोगों को शिक्षा दी गई। योगी सरकार में संस्कृत की पढ़ाई को मिला प्रोत्साहन योगी सरकार ने संस्कृत के प्रचार-प्रसार को प्राथमिकता में रखा। दशकों से कर्मचारियों और शिक्षकों की समस्या से जूझ रहे यूपी माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद को योगी सरकार बनने के बाद वर्ष 2018 में पूरी टीम मिली है। शासन ने परिषद को पुनगर्ठित करते हुए पदेन सदस्यों सहित 28 लोगों को बोर्ड में नामित किया गया है। 'देव भाषा' संस्कृत हमारी बौद्धिक व सांस्कृतिक समृद्धि की आधारशिला है। उसके अध्ययन और प्रसार को प्रोत्साहित करने के लिए भाजपा की डबल इंजन सरकार पूर्णतः प्रतिबद्ध है। आज उत्तर प्रदेश कैबिनेट द्वारा प्रदेश के संस्कृत विद्यालयों/महाविद्यालयों के विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति में… pic.twitter.com/wGTcATiYpa — Yogi Adityanath (@myogiadityanath) August 27, 2024 उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान ने किया प्रचार प्रसार उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान को संस्कृत भाषा को जन-जन पहुंचाने का लक्ष्य दिया गया है। संस्थान ने वर्ष 2018-19 में सरल संस्कृत सम्भाषण शिविर योजना शुरू की। कानपुर, मथुरा, गोरखपुर, वाराणसी, मेरठ एवं लखनऊ में 531 प्राथमिक विद्यालय, 656 माध्यमिक, 181 सार्वजनिक संस्थाओं, 91 महाविद्यालयों, 175 संस्कृत महाविद्यालयों सहित कुल 1634 विद्यालयों में 40850 प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया। प्रदेश में सरल संस्कृत सम्भाषण योजना से जवाहर नवोदय विद्यालय मे संस्कृत प्रशिक्षण दिया गया। मेरठ कालेज में संस्कृत प्रशिक्षण के कार्यक्रम चलाए गये। वाराणसी संवादशाला में आवासीय संस्कृत प्रशिक्षण और इसमें उत्तीर्ण 68 प्रशिक्षकों द्वारा पहली बार अपने-अपने ब्लॉक में चुन्नू मुन्नू संस्कारशाला का आयोजन किया गया। वर्ष 2020-21 में कोविड 19 महामारी के दौरान ऑनलाइन माध्यम से 1800 प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षण दिया और 3600 शिक्षकों को संस्कृत प्रशिक्षण दिया। वर्ष 2021-22 में वर्तमान में ऑनलाइन माध्यम से लगभग 8533 प्रशिक्षणार्थियों को संस्कृत सम्भाषण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रदेश में 600 संस्कृत प्रशिक्षक तैनात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने सरकार की कमान संभालते ही वर्ष 2018 में प्रदेश में 600 संस्कृत प्रशिक्षकों को तैनात किया। ये प्रशिक्षक अलग-अलग जिलों में जाकर प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के शिक्षकों को ट्रेनिंग देते हैं। इन प्रशिक्षकों को 16,500 और 21,500 ₹ का मानदेय भी दिया जा रहा है। योगी सरकार ने संस्कृत को जन जन की भाषा बनाने के लिए संस्कृत विद्यालयों में 15 से 25 दिन के प्रशिक्षण की व्यवस्था की है। संस्कृत शिक्षकों की भारी कमी को देखते हुए सरकार ने मानदेय पर नियुक्ति की है। ग्रेच्युटी और मृतक आश्रित सेवा योजना का प्रावधान कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गयी है। प्रदेश में कुल 1151 संस्कृत माध्यमिक विद्यालयों के माध्यम से संस्कृत की शिक्षा दी जा रही है। इनमें संस्कृत के 973 सहायता प्राप्त और 178 वित्त विहीन संस्कृत माध्यमिक विद्यालय शामिल हैं। संस्कृत के प्रेसनोट जारी करती है योगी सरकार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार एवं उत्थान के लिए हिंदी, अंग्रेजी के अलावा संस्कृत भाषा में भी प्रेस नोट जारी करती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी संस्कृत भाषा में प्रेस नोट जारी करने वाले पहले मुख्यमंत्री बने हैं। हालांकि, संस्कृत में प्रेस नोट जारी करने का अर्थ यह नहीं है कि हिंदी में विज्ञप्ति जारी नहीं होती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के निर्देशानुसार शासकीय प्रेस से विज्ञप्तियां अब संस्कृत भाषा में भी निर्गत की जा रही हैं। संस्कृत पाठशालाओं का कायाकल्प योगी सरकार ने संस्कृत की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बड़ी पहल की है। संस्कृत में आधुनिक विषयों का समावेश करते हुए एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू किया गया है। संस्कृत पाठशालाओं को अनुदान के लिए वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में 324 करोड़ 41 लाख ₹ की व्यवस्था की गई है। संस्कृत को रोजगार से जोड़ने के लिए सरकार ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में निशुल्क ऑनलाइन संस्कृत प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया है। इस केन्द्र के जरिये संस्कृत में रोजगार पाठ्यक्रम में प्रशिक्षण देने की तैयारी है। इस प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना के लिए सरकार ने बजट में 1 करोड़ 16 लाख ₹ की व्यवस्था की है। प्रदेश में मात्र 3,062 लोगों की मातृभाषा संस्कृत साल 2011 के जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से मात्र 24,821 लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा बताया है। हालांकि ये आंकड़ा पिछली जनगणना से बढ़ा है। साल 2001 में मात्र 14,135 लोगों ने संस्कृत को मातृभाषा बताया था। भारत में मातृभाषा के रूप में दर्ज 22 भाषाओं में संस्कृत सबसे आखिरी नंबर पर आती है। उत्तर प्रदेश में मात्र 3,062 लोगों ने ही अपनी मातृभाषा संस्कृत बताई है, जिसमें 1,697 पुरुष और 1,365 महिलाएं हैं। इससे पता चलता है कि संस्कृत बोलचाल की भाषा के रूप में ज्यादा लोकप्रिय नहीं है। सिविल सेवा परीक्षा की निशुल्क कोचिंग करवाता है उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान निशुल्क कोचिंग करा रहा है। इस कार्यक्रम की शुरुआत संस्कृत साहित्य को रोजगार उन्मुख बनाने के लिए की गयी है। संस्थान ने पहली बार दिसंबर साल 2019 में निःशुल्क कोचिंग क्लास की शुरुआत की थी। इस कोचिंग में अभ्यर्थियों को सामान्य अध्ययन के साथ संस्कृत की कक्षाएं होती है। इसके अलावा अभ्यर्थियों को हर माह 3000 ₹ स्कॉलरशिप के रूप में दिया जाता है। जिन अभ्यर्थियों ने संघ और राज्यों की सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा संस्कृत विषय के साथ उत्तीर्ण की है, उन्हें सीधे प्रवेश दिया जाता है।सत्र में कुल 75 अभ्यर्थियों को शामिल किया जाता है। निशुल्क कोचिंग से 10 अभ्यर्थियों को पीसीएस और एक को आईएएस में सफलता मिली है। इसके अलावा 35 अभ्यर्थियों को अन्य परीक्षाओं में सफलता प्राप्त हुई है। कॉन्वेंट स्कूलों की तर्ज पर हर जिले में संस्कृत आवासीय विद्यालय उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कॉन्वेंट स्कूलों की तर्ज पर सभी 75 जिलों में संस्कृत आवासीय विद्यालय खोलने की योजना बना रही है। इन विद्यालयों में इंटर तक की पढ़ाई के साथ रोजगार परक शिक्षा भी दी जाएगी। पहले चरण में 35 और दूसरे चरण में 40 आवासीय विद्यालय खोले जाएंगे। शुरुआत में ये विद्यालय प्रयागराज, अयोध्या, सीतापुर, मथुरा और चित्रकूट में खुलेंगे। यूपी में संस्कृत विद्यालयों की संख्या करीब 1246 है, लेकिन सरकारी संस्कृत विद्यालय सिर्फ 2 हैं। इनमें से एक भदोही में और एक चंदौली में है। 17 साल बाद सरकार की ओर से नये संस्कृत माध्यमिक विद्यालयों को मान्यता देना शुरू किया गया। सरकारी और सहायता प्राप्त संस्कृत माध्यम स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 6-8 के छात्रों के लिए मुफ्त पाठ्यपुस्तकों और मध्याह्न भोजन की व्यवस्था की गई है। संस्कृत विद्यालयों के बच्चों को हुनरमंद बना रही योगी सरकार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार जल्द ही संस्कृत के छात्रों को हुनरमंद बनाने के लिए कर्मकांड का भी बोध करा रही है। इससे छात्रों को रोजगार के हिसाब से तैयार करने में मदद मिलेगी। राज्य में कुल 1,166 संस्कृत माध्यम विद्यालय संचालित हैं जिनमें 1 लाख से अधिक विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। योगी सरकार ने संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने एवं इसे रोजगार से जोड़ने का फैसला किया है। माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद रोजगार परक कोर्स के रूप में पुरोहित, कर्मकांड, ज्योतिष एवं योग में डिप्लोमा प्रदान करता है। शहर से लेकर गांव तक में पुरोहितों की मांग है।कर्मकांड कराने वालों की भी जरूरत महसूस की जा रही है, वहीं जिस तरह से लोग सेहत के प्रति जागरूक हुए हैं, योग सिखाने का काम भी रोजगार का एक बेहतर माध्यम बनकर उभरा है। सरकार इन कोर्सेज की ब्रांडिंग भी आने वाले दिनों में करेगी। माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जानते हैं कि संस्कृत भाषा ना केवल आध्यात्मिक रुप से देश को बढ़ा सकती है बल्कि विज्ञान में भी देश को आगे ले जा सकती है। इन दिनों कई सूचना प्राद्यौगिकी के जानने वाले आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की कोडिंग में संस्कृत का उपयोग कर रहे हैं. संस्कृत ही वो भाषा है जिससे कई भारतीय,यूरोपीय और लेटिन भाषा का जन्म हुआ है। यूरोप में बोली जाने वाली कई भाषाओं के शब्द संस्कृत से मिलते-जुलते हैं। यहां तक की यूरोप के कई प्रसिद्ध वनस्तपति वैज्ञानिकों ने संस्कृत में लिखे गए पौधों के नाम को ही थोड़ा बदलकर अपनी उपलब्धि बताने का काम भी किया है जब्कि मूलरूप से उन्हें पौधों के बारे में भारत की प्राचीन पुस्तकों से पता चला है। संस्कृत को बढ़ावा देने से भारत की संस्कृति दुनिया में और ज्यादा लोगों को प्रभावित करेगी और भारत को विश्वगुरु बनाने की राह में मील का पत्थर साबित होगी।