राष्ट्रीय अंतरिक्ष मिशन में उत्तर प्रदेश के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की मेधा की चर्चा पूरे विश्व में हो रही है। चंद्रयान मिशन-3 की सफलता में उत्तर प्रदेश के युवा वैज्ञानिकों के कार्य का सबने लोहा माना। वैसे तो इस मिशन की सफलता में इसरों की बहुत बड़ी टीम शामिल थी लेकिन उत्तर प्रदेश की वैज्ञानिक प्रतिभाओं ने दबदबा कायम किया। उत्तर प्रदेश के वैज्ञानिक भारत के सुनहरे अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र की इबारत लिखने में अहम साबित होंगे। 'मिशन मून' में लखनऊ की बेटी ऋतु का अहम रोल चंद्रयान-3 मिशन में 'रॉकेट वुमन' नाम से चर्चित अंतरिक्ष वैज्ञानिक ऋतु करिधाल श्रीवास्तव का अहम रोल है। लखनऊ की रहने वाली ऋतु चंद्रयान मिशन-3 की डायरेक्टर थीं।इससे पहले वो भारत के मंगलयान मिशन का भी हिस्सा रही हैं। तब उन्होंने डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर की भूमिका निभाई थी। 1975 में जन्मीं ऋतु करिधाल को बचपन से ही चांद-सितारों और आसमान में दिलचस्पी थी। ऋतु ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में एमएससी की है। फिर विज्ञान और अंतरिक्ष में रुचि को देखते हुए बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान में प्रवेश लेकर पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने इसरो जॉइन किया । वर्ष 2007 में ऋतु को यंग साइंटिस्ट अवार्ड भी मिल चुका है। उन्नाव के आशीष मिश्र का सफल लैडिंग में योगदान चंद्रयान -3 मिशन की सफल लैंडिंग में उन्नाव जिले की आवास विकास कॉलोनी निवासी वैज्ञानिक आशीष मिश्र ने अहम भूमिका निभाई है। आशीष ने चंद्रयान की लॉन्चिंग से लेकर लैंडर प्रोपल्शन सिस्टम के विकास में भूमिका का निर्वाह किया है। आशीष ने 2008 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में कदम रखने के बाद अपने पेशेवर करियर में लगातार परिश्रम किया। इनके पिता स्व. गिरीश चंद्र मिश्र वकील थे, जिनका देहांत 2015 में हो चुका है।आशीष ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आईआईटी मुंबई से मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की है और 2008 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में काम करना शुरू किया। इसरो में आशीष विशेष रूप से नियंत्रण इलेक्ट्रॉनिक्स और थ्रॉटलिंग वाल्वों के विकास में सहायक सदस्य हैं, जो चंद्रयान-3 के लैंडिंग प्रयास में महत्वपूर्ण था। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष उपग्रहों के प्रक्षिप्त यान जैसे पीएसएलवी, जीएसएलवी और एलवीएम-3 में भी अपना योगदान दिया है। वे सैटेलाइट्स के विकास में भी शामिल रहे हैं। फिरोजाबाद के धर्मेंद्र सिग्नल रिसीविंग टीम के थे सदस्य फिरोजाबाद के टीकरी गांव के धर्मेंद्र प्रताप यादव चंद्रयान-3 की लांचिंग टीम के सदस्य हैं। अभी वो इसरो में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उनके पिता एक किसान हैं और मां ग्रहणी हैं।, इस मिशन में वैज्ञानिक धर्मेंद्र का मुख्य कार्य चंद्रयान से सिग्नल को रिसीव करने का था। फिरोज़ाबाद में इंटरमीडिएट करने के बाद उन्होंने मथुरा के हिंदुस्तान कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में जालंधर पंजाब से एमटेक पूरा किया। अगस्त 2011 में उनकी पोस्टिंग इसरो में हुई थी। उन्होंने मंगलयान टीम में भी काम किया है। चंद्रयान-3 प्रोजेक्ट में सिग्नल संचारित करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी धर्मेंद्र के कंधों पर थी। इटावा के अंकुर गुप्ता ने की थी चंद्रयान की डिजायनिंग इटावा के कस्बा बसरेहर के रहने वाले साइंटिस्ट अंकुर गुप्ता ने चंद्रयान-3 के कॉम्पोनेंट की बनावट और वजन के डिजाइन में अहम भूमिका निभाई है। इससे पहले 2012 में अंकुर ने ISRO के मंगलयान मिशन में भी काम किया था। अंकुर गुप्ता की शुरुआती पढ़ाई स्थानीय स्कूल से हुई, इसके बाद उन्होंने गोरखपुर के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक किया। फिर प्रयागराज के इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक करने के बाद आईआईटी दिल्ली से पीएचडी की डिग्री हासिल की। साल 2012 में वह बतौर वैज्ञानिक इसरो से जुड़ गए। फतेहपुर के सुमित कुमार तकनीक टीम में रहे शामिल सुमित कुमार मूल रूप से फतेहपुर जिले के खागा स्थित विजयनगर के रहने वाले हैं। इन्होंने अपनी इंटरमीडिएट की पढ़ाई खागा कस्बे के शुकदेव इंटर कॉलेज से करने के बाद लखनऊ के एक निजी कॉलेज से इलेक्ट्रानिक्स एवं कम्युनिकेशन ब्रांच से बीटेक किया। वो इसरो में 2008 से वैज्ञानिक हैं। उनका चंद्रयान-3 के अलावा पीएसएलवी, जीएसएलवी उपग्रह प्रक्षेपण व चंद्रयान-2 अभियान में भी योगदान रहा है। अंतरिक्ष विज्ञानी सुमित कुमार मौजूदा समय में इसरो के अहमदाबाद स्थित केंद्र में तैनात हैं और चंद्रयान-3 के लैंडर व रोवर में लगे कैमरों की तकनीकी व डिजाइन टीम का हिस्सा रहे हैं। उनकी टीम ने चंद्रयान के लैंडर और रोवर में लगें कुल पांच कैमरों की तकनीकी डिजाइन की है। चंद्रयान-3 को विकिरण से बचाने में प्रयागराज की अंजू चतुर्वेदी की अहम भूमिका इसरो के मेटेरोलाजिकल एवं अर्थ आब्जर्वेटरी उपग्रह समाकलन की उप परियोजना निदेशक प्रयागराज की अंजू चतुर्वेदी और उनकी टीम ने साफ्टवेयर सिमुलेशन की मदद से चंद्रयान को विकिरण से बचाने के लिए मानक तय किए। अंजू प्रयागराज से इसरो में जुड़ने वाली प्रथम वैज्ञानिक महिला हैं। यहां के डीपी गर्ल्स स्कूल की मेधावी छात्रा रहीं अंजू ने 1997 में गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक किया। ओम गायत्री नगर निवासी अंजू पहले अलोपीबाग में रहती थीं। उनके पिता महेंद्र चतुर्वेदी पूर्व आडिट आफिसर हैं। दादा जनकदेव चतुर्वेदी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वर्ष 1998 में इसरो में पदभार ग्रहण करने के बाद प्रारंभ में प्रथम क्रायोजेनिक इंजन टेस्टिंग के कंट्रोल सिस्टम एवं डाटा अभिग्रहण पर कार्य किया। वे पिछले 25 वर्षों से अनेक उपग्रहों का रियलाइजेशन कर रहीं हैं। प्रयागराज के हरिशंकर ने बनाया था इंटेलीजेंस सेंसर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए जिस इंटेलीजेंस सेंसर का प्रयोग किया गया, उस तकनीक को विकसित करने वाली टीम में इसरो के वैज्ञानिक हरिशंकर गुप्ता भी शामिल रहे, जो इविवि के जेके इंस्टीट्यूट के छात्र रह चुके हैं। इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद में कार्यरत हरिशंकर गुप्ता ने इविवि के जेके इंस्टीट्यूट से वर्ष 1998 में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन से बीटेक किया था। बीटेक के बाद बीएचयू से एमटेक किया और वर्ष 2002 में इसरो से जुड़ गए। एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद में काम करते हुए हरिशंकर गुप्ता ने सेंसर डेवलपमेंट के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण काम किए। चंद्रयान मिशन-3 की सबसे बड़ी चुनौती लैंडर को सुरक्षित उतारने की थी, क्योंकि चंद्रयान-2 मिशन इसी में नाकाम रहा था। इस बार चांद पर भेजे गए रोवर में इमेजिंग प्रणाली तैयार करने वाली टीम का हिस्सा बने हरिशंकर गुप्ता भी इतिहास रचने वालों में शामिल हो गए। नेहा अग्रवाल के प्रयासों से मिली राह प्रयागराज के मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान की पूर्व छात्रा नेहा अग्रवाल भी इस अभियान में शामिल हैं। छह साल से इसरो में काम कर रहीं प्रयागराज की नेहा अग्रवाल भी चंद्रयान-3 से जुड़ी हैं। गर्ल्स हाईस्कूल से स्कूली पढ़ाई पूरी करने वाली नेहा ने यूनाइटेड कॉलेज से बीटेक किया। 2017 में एमएनएनआइटी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन से एमटेक में गोल्ड मेडल हासिल किया। इसी वर्ष इसरो से जुड़ीं और मिशन की सफलता में योगदान दिया। उन्होंने मिशन चंद्रयान-2 में भी काम किया था। लैंडर-रोवर टीम के सदस्य हैं अलीगढ़ के प्रियांशु अलीगढ़ के प्रियांशु वार्ष्णेय इसरो की उस अहम टीम का हिस्सा हैं, जो लैंडर और रोवर को लेकर काम कर रही थी। एएमयू से एम.टेक (इलेक्ट्रॉनिक्स) की पढ़ाई करने वाले प्रियांशु के पिता डॉ. राजीव कुमार वार्ष्णेय एसवी कॉलेज में भूगोल विभाग में प्राध्यापक हैं। मां ममता गुप्ता विष्णुपुरी बेलामार्ग स्थित प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका हैं। मिर्जापुर के आलोक ने निभाई लैंडिंग व कम्युनिकेशन की जिम्मेदारी मिशन में मिर्जापुर के युवा वैज्ञानिक आलोक कुमार पांडेय ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आलोक और उनके साथियों ने लैंडिंग और कम्युनिकेशन की जिम्मेदारी संभाली है। मिशन के शत-प्रतिशत सफल होने के लिए आलोक तीन दिन तक लगातार इसरो के कमांड सेंटर में ही काम करते रहे। इसरो में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर काम कर रहे आलोक मार्स मिशन 2014 में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए उत्कृष्ट वैज्ञानिक पुरस्कार पा चुके हैं। चंद्रयान दो की लांचिंग में भी महत्वपूर्ण निभा चुके हैं। लिक्विड प्रोपल्सन के इंचार्ज रहे बदायूं के सत्यपाल चंद्रयान-3 के लांच व्हीकल के दूसरे चरण लिक्विड प्रोपल्सन के इंचार्ज की महत्वपूर्ण भूमिका उझानी निवासी सत्यपाल अरोड़ा ने निभाई। इसरो में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर काम कर रहे सत्यपाल ने चंद्रयान के दूसरे चरण में लिक्विड प्रोपल्सन की टेस्टिंग और एनालिसिस का कार्य 60 लोगों की टीम के साथ पूरा किया। मुरादाबाद के वैज्ञानिक दंपती के साथ रजत भी मिशन में मुरादाबाद के कांशीरामनगर ई-ब्लॉक निवासी मेघ भटनागर और उनकी पत्नी गौतमी इस मिशन में ऑन बोर्ड सॉफ्टवेयर साइंटिस्ट के रूप में जुड़े थे तो खुशहाल नगर निवासी वैज्ञानिक रजत प्रताप सिंह ने भी चंद्रयान 3 मिशन में अहम योगदान दिया है। मेघ इससे पहले चंद्रयान-2 से जुड़े थे। वह चंद्रयान-2 को कक्षा में स्थापित करने वाले रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 से मिशन डिजाइन क्वालिटी कंट्रोल साइंटिस्ट के पद पर काम कर थे। रजत इसरो की चयन परीक्षा में ऑल इंडिया टॉपर रह चुके हैं। प्रतापगढ़ के रवि केसरवानी ने बनाए विशेष उपकरण प्रतापगढ़ के रवि केसरवानी चंद्रयान-3 मिशन की उस टीम में हैं, जिसने शेप (स्पेक्ट्रो पोलरोमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लेनेटरी अर्थ) नाम का विशेष उपकरण बनाया है। यह चांद पर धरती से भेजे गए सिग्नल का अध्ययन करेगा। रवि 2016 में इसरो में दाखिल हुए। 2019 में उनकी नियुक्ति साइंटिफिक टेक्निकल अफसर-सी के पद पर हुई। रवि की टीम ने चंद्रयान-3 में 'शेप' का सुझाव दिया था। रवि के पिता ओमप्रकाश केसरवानी कुंडा कस्बे के सरयूनगर मोहल्ले में किराने की दुकान चलाते हैं। तकनीकी टीम का हिस्सा रहे गाजीपुर के कमलेश शर्मा चंद्रयान-3 मिशन की टीम में गाजीपुर के कमलेश शर्मा भी शामिल रहे हैं। गाजीपुर जनपद के रेवतीपुर निवासी कमलेश ने 12वीं तक गाजीपुर से और लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन व मैथ्स में पोस्ट ग्रेजुएशन की। ये नेट और गेट एग्जम भी पास कर चुके हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री सब्जेक्ट में सबसे ज्यादा नंबर लाने के लिए 10 मेडल भी जीते थे। कमलेश 2010 से इसरो से जुड़े हैं। उत्तर प्रदेश की इन युवा प्रतिभाओं ने उत्तर प्रदेश का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है। जिस दिन चंद्रयान-3 ने चांद पर भारत का झंड़ा गाढ़ा उसी दिन उत्तर प्रदेश के वैज्ञानिकों ने भी उत्तर प्रदेश का नाम चांद पर उकेर दिया। उत्तर प्रदेश हमेशा से प्रतिभावान युवाओं की जननी भूमि रही है। माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम किया जा रहा है ताकि उत्तर प्रदेश के युवा देश के विकास में बड़ी भूमिका निभा पाएं।