15 अगस्त 1947 से पहले जब भारत को आजाद करने का खाका तैयार हो रहा था तो प्रधानमंत्री पद को लेकर कुछ बड़े नेताओं में खींचतान मची हुई थी। इसी दौरान नेताजी सुभाष चंद बोस के भतीजे अमय नाथ बोस महात्मा गांधी जी से मिलने पूना पहुंचते हैं। आमतौर पर गांधी जी के साथ हमेशा कोई न कोई रहता था। लेकिन उस दिन वे अकेले थे। बस क्या था, अमय नाथ बोस ने गांधी जी से पूछ डाला कि बापू आप अकेले क्यों बैठे हैं। गांधी जी ने कहा कि अमय, सब लोग देश का बंटवारा चाहते हैं। ये बोलकर बापू चुप हो गए। जब अमय वापस आने लगे तो गांधी जी ने कहा- ''अमय, आज मैं तुम्हारे अंकल सुभाष चंद्र बोस को बहुत मिस कर रहा हूं। आज अगर वो होते तो देश की ये हालत नहीं होती।'' इस ऐतिहासिक संवाद में गांधी जी का ये कहना कि आज मैं सुभाष चंद्र बोस को बहुत मिस कर रहा हूं बेहद अहम था ऐसे वक्त में जब आजाद भारत के लिए एक अंतरिम प्रधानमंत्री चुना जाना था। राष्ट्र के नवनिर्माण की बुनियाद रखी जानी थी। कहने का मतलब यह कि अगर उस वक्त सुभाष चंद्र बोस होते तो बहुत संभव था पंडित नेहरू की जगह देश के पहले प्रधानमंत्री नेता जी ही होते। काश! अगर ऐसा हुआ होता तो देश बंटवारे का दंश नहीं झेलता। ऐसा कहा भी जाता है कि मोहम्मद अली जिन्ना अगर किसी एक हिन्दू नेता को पसंद करते थे तो वो थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। एकीकृत भारत का सपना लेकर बढ़ रहे थे नेता जी दरअसल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के उन स्वतंत्रता सेनानियों में से एक रहे, जिन्होंने आजाद भारत का सपना न सिर्फ देखा बल्कि उसके लिए जीवन की आहुति भी दी। शुरुआती दौर से ही नेता जी ने अपने चिन्तन, अपनी भावना और अपनी कर्म साधना से भारत को स्वाधीन करने तथा उसे एक सशक्त राष्ट्र बनाने की दिशा में प्रयुक्त किया था। नेता जी का ऐसा भरोसा था कि राष्ट्र जागरण और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया साथ-साथ चलना चाहिए। वह मजबूत केंद्रीय सरकार चाहते थे, जिसके माध्यम से भारत एकीकृत हो सके। कांग्रेस में आंतरिक विवाद से नाराज नेता जी ने जिस फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की थी उसका लक्ष्य ही था पूर्ण स्वराज्य। पूर्ण स्वराज्य मतलब भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण देश। आजाद हिन्द ने यह फैसला किया था कि वे लड़ते हुए दिल्ली पहुंचकर आजादी की घोषणा करेंगे। दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं सका। देश को आजादी मिली जरूर, लेकिन विभाजन की विभीषिका के साथ। ऐसे में ये सवाल सबके मन में कौंधता जरूर है कि आखिर नेताजी के सपनों का भारत कैसा था? अगर नेता जी आजाद भारत के प्रधानमंत्री बनते तो हमारा भारत कैसा होता? जनसंख्या विस्फोट को लेकर नेता जी की सोच कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर साल 1938 में गुजरात के हरिपुरा में दिए अपने भाषण में नेता जी ने भावी भारत का जो नक्शा खींचा था, आज 85 साल बाद भी बेहद प्रासंगिक लगता है। पूरी दुनिया आज जिस जनसंख्या विस्फोट को लेकर चिंतित है, नेता जी ने इसको लेकर तभी कहा था, "हमें बढ़ती आबादी के संकट का समाधान ढूंढ़ना चाहिए। भारत की आबादी अधिक है या कम - इस तरह के सैद्धांतिक सवालों में उलझने की मेरी कोई इच्छा नहीं। मैं ये दिखाना चाहता हूं कि जब धरती पर गरीबी, भुखमरी और बीमारी बढ़ रही है, तब एक दशक में ही 30 करोड़ तक बढ़ चुकी आबादी को हम संभाल नहीं सकते। यदि आबादी इसी तरह बेतहाशा बढ़ती रही, तो हमारी योजनाओं के विफल होने की आशंका है। इसलिए जब तक हम पहले से ही मौजूद आबादी के लिए रोटी, कपड़े और शिक्षा का प्रबंध नहीं कर लेते, अपनी आबादी को रोकना जरूरी है।" सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि नेताजी की सोच में कितनी दूरदर्शिता थी। भूमि व्यवस्था में सुधार और कर्जमुक्त किसान आजादी के बाद गरीबी निवारण के लिए योजनाएं बनाई तो गईं, लेकिन उन्हें जमीनी हकीकत बनाने के लिए ठोस तरीके अख्तियार नहीं किए गए। लेकिन नेताजी को इसका अंदेशा था, इसीलिए उन्होंने अपने ढंग से इन विषयों पर सोचा और उसे लागू करने की योजना भी बनाई थी। नेताजी ने तब कहा था, "हमें भूमि व्यवस्था में सुधार की जरूरत होगी, इसमें जमींदारी प्रथा को खत्म करना भी शामिल है। हमें किसानों को कर्ज के बोझ से छुटकारा दिलाना होगा। ग्रामीणों को कम ब्याज पर कर्ज दिलाना होगा, लेकिन आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए कृषि क्षेत्र में किए गए सुधार ही काफी नहीं हैं। राज्य नियंत्रित औद्योगिकीकरण को हम कितना भी नापसंद करते हों, उसके दुष्प्रभावों की हम कितनी ही आलोचना क्यों न करें, लेकिन हमारे लिए पूर्व औद्योगिक काल में लौटना संभव नहीं। हमें इस ओर भी देखना होगा। स्वतंत्र भारत में संपूर्ण कृषि और औद्योगिक ढांचे का उत्पादन और विनिमय के क्षेत्र में समाजीकरण करने के उद्देश्य से हमें योजना आयोग के परामर्श से समेकित होकर कार्यक्रम बनाना होगा।" विभाजन की विभीषिका से पहले ही किया था सचेत आजाद भारत की प्रशासनिक नीति क्या होगी और किन विषयों पर सरकार को फोकस करना होगा, इसको लेकर भी नेता जी की दृष्टि बहुत साफ थी। उनके पास योजना थी कि आने वाले दिनों में हमें अपनी योजनाएं बनाने के लिए बाकायदा योजना आयोग स्थापित करना होगा और उसके जरिए योजनाएं तैयार करनी होंगी। अंग्रेज लौटेंगे तो वे भारत का विभाजन करके मानेंगे, कांग्रेस के तपे-तपाए नेता भी इसका अंदाजा नहीं लगा पाए थे। लेकिन सुभाष चंद्र बोस को इसका अंदाजा हो गया था। साइमन कमीशन के विरोध में सुभाष बाबू ने जो आंदोलन छेड़ा था, उससे उनकी लोकप्रियता बढ़ गई थी। विशेषकर नौजवानों के बीच उन्हें चाहने वाले बढ़ने लगे थे। अपने एक भाषण में उन्होंने अंग्रेजों के जाने के बाद भारत विभाजन की आशंका जताई थी। इस संदर्भ में उन्होंने देश को सचेत रहने का संदेश भी दिया था। मिस्र, फिलीस्तीन, इराक और आयरलैंड समेत कई देशों का हवाला देते हुए तब नेताजी ने कहा था कि इन देशों का इतिहास बताता है कि हमारे आंदोलनों से अंग्रेज जब भारत छोड़ने को मजबूर होंगे तो वे ऐसी कारगुजारी करने की कोशिश जरूर करेंगे। देश के सभी नागरिकों से समान बर्ताव का मंत्र नेता जी का मानना था कि सार्वजिनक रोजगार और सम्मान के पद, किसी व्यापार या आह्वान के दौरान किसी नागरिक की उसके धर्म, जाति, संप्रदाय और लिंग के आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। सभी धर्मों के संदर्भ में राज्य का नजरिया निरपेक्ष रहना चाहिए। देश का हर नागरिक भारत में कहीं भी आने-जाने, रहने और बस जाने, जमीन-जायदाद का अनुसरण करने के लिए आजाद होगा। देश के सभी भागों में उनके साथ कानूनी मुकदमों और सुरक्षा के संदर्भ में समान व्यवहार किया जाएगा। 1938 में धार्मिक समुदायों में मधुरता लाने के मकसद से नेता जी ने जिन्ना को कई पत्र भी लिखे थे। वह चाहते थे कि सभी अल्पसंख्यक वर्गों और प्रांतों को सुख-चैन से जीने दिया जाए। उन्हें सांस्कृतिक और सरकारी मामलों में पूरी स्वायत्तता दी जाए। उनका मानना था कि धर्म, जाति, संप्रदाय या लिंग से निरपेक्ष कानूनों की नजरों में सभी नागरिक बराबर हों। कुल मिलाकर देखा जाए तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस समय से आगे देखने की क्षमता रखते थे। देश-दुनिया की गजब की समझ रखने वाले नेता जी गजब के योजनाकार थे। आठ-नौ दशक पहले के उनके भाषणों या उनके द्वारा समय-समय पर लिखे आर्टिकल के संदेश को जिनमें से कई तथ्यों का उल्लेख इस लेख में किया गया है, आपको लगेगा कि ये शख्स उस वक्त जो देख रहा था या समझ रहा था, वह सच में उन्हें देश के दूसरे तमाम नेताओं से कितना अलग खड़ा करता है। कोई संदेह नहीं कि अगर देश के प्रथम प्रधानमंत्री के तौर पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस शपथ लिए होते तो हम सब आज सशक्त और एकीकृत भारत के नागरिक होते।