उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में गिद्धों की संख्या लगातार घटती जा रही है। पिछले तीन दशक में देश में गिद्धों की संख्या 4 करोड़ से घटकर 4 लाख रह गई है। इसमें भी दुर्लभ प्रजाति के लाल सिर वाले राज गिद्ध की गिनती तो अब अंगुलियों पर ही सीमित है। गिद्धों की घटती संख्या को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ जी ने 7 अक्टूबर 2020 को गोरखपुर के कैम्पियरगंज रेंज में ‘जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र’का शिलान्यास किया था। आज 6 सितंबर 2024 को 15 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इस केंद्र का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने उद्घाटन किया। न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया का यह पहला राजगिद्ध (रेड हेडेड वल्चर) का संरक्षण केंद्र है। राजगिद्ध प्रजाति के अस्तित्व पर संकट पर्यावरणीय चुनौतियों के चलते इस प्रजाति के अस्तित्व पर संकट गहराता जा रहा है। एशियन राज गिद्ध आवासों के नष्ट होने और घरेलू पशुओं में डायक्लोफेनाक दवा के अत्यधिक उपयोग के कारण खतरे में हैं। यह दवा गिद्धों के लिए जहरीली होती है। एक शोध से पता चला है कि, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के आठ जिलों में सिर्फ 174 लाल गिद्धों का बसेरा देखने को मिला है। इनमें पांच साल के ऊपर उम्र के 132 और एक से सवा साल की उम्र के 42 लाल गिद्ध के बच्चे शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में पांच, झांसी में एक व ललितपुर में तीन राज गिद्ध पाए गए। दुर्लभ प्रजाति के राज गिद्ध का सिर होता है लाल राज गिद्ध लाल सिर का दुर्लभ प्रजाति का गिद्ध होता है। इसकी भारी कद, काठी होती है और देश में इनकी संख्या काफी कम है। ये गिद्ध किसी समूह में शामिल न होकर अकेले या मादा के साथ ही देखे गए हैं। भारत में करीब नौ प्रकार के गिद्ध पाए जाते हैं। इनमें राज गिद्ध के साथ देसी गिद्ध, सफेद गिद्ध, काला गिद्ध, हिमालयी गिद्ध, यूरेशियाई गिद्ध, पतल चोंच गिद्ध सहित एक अन्य नाम शामिल है। राज गिद्ध की अनुपस्थिति में कोई भी गिद्ध, जानवर के शव को खोल नहीं सकता। राज गिद्ध ही इसको अपनी चोंच से फाड़ता है। सबसे पहले खुद ही खाता है। उसके बाद बाकी गिद्ध खाना आरंभ करते हैं।यह अन्य गिद्धों से अलग अकेले या मादा के साथ रहते हैं। खास बात यह है कि जहां भी राज गिद्ध घोंसला बनाता है, वहां से एक किमी के दायरे में दूसरा राज गिद्ध घोंसला नहीं बना सकता। लाल सिर और काले पंख वाले नर राज गिद्ध की आंखें सफेद या हल्के पीले रंग तथा मादा गिद्ध की आंखें भूरे रंग की होती हैं। राज गिद्ध का है पौराणिक महत्व रामायण में गिद्धराज जटायु की खास भूमिका रही है। रामायण के अनुसार जब लंकापति रावण सीता का हरण कर उसे पुष्पक विमान से ले जा रहा था तो गिद्धराज जटायु रावण के साथ युद्ध करते हैं और माता सीता को बचाने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन रावण के प्रहार से जटायु बुरी तरह से घायल हो जाते हैं। सीता जी को तलाशते हुए भगवान राम को जंगल में घायलावस्था में गिद्धराज जटायु मिलते हैं। मरणासन्न स्थिति में जटायु ने भगवान राम को सीता जी का समाचार दिया और प्राण त्याग दिए। इसलिए सनातन धर्म में गिद्धराज जटायु का बड़ा महत्व है। प्रजनन एवं संरक्षण केंद्र का उद्देश्य केंद्र का लक्ष्य गिद्धों के अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना और उनकी आबादी बढ़ाना है। उस दिशा में जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र काफी महत्वपूर्ण होगा। इसमें ब्रीडिंग एवरी, होल्डिंग एवरी, हॉस्पिटल एवरी, नर्सरी एवरी जैसे विभिन्न संरचनाओं का निर्माण किया गया है। फिलहाल यहां छह राजगिद्ध (नर और मादा) लाए जा चुके हैं। लक्ष्य के अनुसार अगले 15 वर्ष में गिद्धों के 40 जोड़े तैयार कर उन्हें छोड़ने की तैयारी है।इस समय केंद्र के चार बाड़ो में चार मादा व एक में नर व मादा गिद्ध का जोड़ा संरक्षित किया जा रहा है। इसमें जोड़ा वाले गिद्ध की उम्र डेढ़ वर्ष है और अन्य की तीन से चार वर्ष है। इको टूरिज्म को मिलेगा बढ़ावा राज गिद्धों की लुप्त प्रजाति को बचाने के लिए बनाए गए जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र में गिद्धों की निगरानी सीसीटीवी कैमरों के जरिए की जा रही है। यह केंद्र ना केवल राजगिद्धों की संख्या बढ़ाने में सहायक होगा बल्कि पर्यटकों की संख्या भी इस केन्द्र से बढ़ेगी, जिससे ईको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। वर्ष 2007 से लाल गर्दन वाले राज गिद्ध को लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।एशियाई किंग गिद्ध मुख्यता उत्तर भारत में पाई जाने वाली चिड़िया है। वर्ष 2004 में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा गिद्ध की इस प्रजाति को लगभग विलुप्त की श्रेणी में रखा गया था। वर्ष 2007 में आइयूसीएन द्वारा लगभग श्रेणी से इसे गंभीर खतरे की श्रेणी में रखा गया। ललितपुर में है गिद्ध रेस्त्रां बुंदेलखंड के ललितपुर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर धौरा ब्लॉक के देवगढ़ के जंगल में प्रवेश करते ही आसमान में उड़ते गिद्ध अपनी मौजूदगी का आभास कराने लगते हैं।देवगढ़ के महावीर वन अभयारण्य में 1200 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 'वल्चर रेस्तरां' या 'वल्चर हब' विकसित किया गया है। वन विभाग के कर्मचारी चुनिंदा जगहों पर नियमित तौर पर गिद्धों के लिए मृत पशुओं को रखते हैं. जंगल के अंदर रणछोड़ धाम मंदिर के आसपास गिद्धों के दर्जनों घोसलें भी हैं। इस रेस्टोरेंट की शुरुआत के बाद से गिद्धों की मौत की दर में काफी कमी आई है। यह रेस्टोरेंट गिद्धों को चिकित्सकीय जांच के बाद परोसे जाने वाले मांस प्रदान करता है, जिससे उनकी सेहत में सुधार आया है और उनका जीवनकाल बढ़ा है। पहले देवगढ़ वन क्षेत्र में गिद्धों की संख्या केवल 60-70 थी, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 125 हो गई है, जिसमें राज गिद्ध भी शामिल हैं जिन्हें जटायु कहा जाता है। प्रकृति प्रदत्त सफाईकर्मी है गिद्ध गिद्धों को प्रकृति का सफाईकर्मी माना जाता है। मृत जानवर इनका आहार होता है। गिद्धों का मेटाबॉलिक सिस्टम इस प्रकार बना है कि यह आहार के हर हिस्से को पचा जाते हैं। राज गिद्ध लाश को खोलने का काम करता है। इसी तरह इजिप्शियन और सेरेनियस गिद्ध अंत में लाशों के मज्जा व हड्डियों को खाते हैं। गिद्धों में कौन सी प्रजाति दिल, यकृत, बिसरा, दिमाग, आंखें खाएगी, यह भी तय रहता है। गिद्धों के खतम होने से प्राकृतिक व्यवस्था बिगड़ी है। मरे हुए जानवरों का निस्तारण सही तरीके से नहीं हो पा रहा है। गिद्धों की पर्याप्त मौजूदगी से मृत पशुओं से फैलने वाली बीमारी का उतना खतरा नहीं रहता था क्योंकि गिद्ध बड़ी ही सफाई से शव को चट कर जाया करते थे लेकिन अब यह शव सड़कर बीमारियों के वाहक बनने लगे हैं. इन गिद्धों के कम होने से भोजन श्रृंखला की एक कड़ी समाप्ति के कगार पर पहुंच गयी है। गिद्धों का संरक्षण और प्रजनन केन्द्र शुरु कर माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रकृति और विकास में संतुलन रखने की कोशिश की है। बिना जीवों के प्रकृति का संतुलन बिगड़ेगा और यह मानव जाति के लिए भी खतरा है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में वन और वन्यप्राणियों का संरक्षण किया जाता है ताकि प्रदेश के वातावरण को स्वस्थ रखा जा सके।