मार्च 2017 में सत्ता संभालते ही उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने तमाम उन प्रतीकों को धराशायी करने की घोषणा की जो सनातन की पहचान को दबाए हुए थे। चाहें वो स्कूलों में पढ़ाया जा रहा पाठयक्रम हो, शहरों के नाम, धर्मस्थल और संस्थानों के नाम हो सब को उनके ऐतिहासिक स्वरुप में लौटाने की कोशिश माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की सरकार कर रही है। भारत और उत्तर प्रदेश का इतना गौरवमय इतिहास रहा है जिसे भारत में आए आक्रमणकारियों ने ना केवल नष्ट करने का प्रयास किया है बल्कि भारत के लोगों में भारत के गौरवमयी इतिहास को लेकर भ्रम फैलाने का भी काम किया है। इन आक्रमणकारियों की नीतियों का समर्थन करने वाली सरकारों ने हिंदुस्तान के महापुरुषों का महिमामंडन करने के बजाय उन आक्रमणकारियों का महिमामंडन करने का काम किया है जिन्होंने भारत में आक्रमण कर ना केवल यहां पर लाखों लोगों को नरसंहार किया बल्कि भारतीय सभ्यता के प्रतीक मंदिरों को भी तोड़कर उस पर मस्जिदें बनाने का काम किया है। उत्तर प्रदेश के पाठ्यक्रमों में नहीं होगा मुगलों का गुणगान अप्रैल 2023 में माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने तय किया था कि उत्तर प्रदेश के पाठ्यक्रम की पुस्तकों में मुगल चैप्टर नहीं पढ़ाया जाएगा। 12 वीं कक्षा की इतिहास की किताब से मुगल चैप्टर को हटा दिया गया जब्कि 11 वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में भी बदलाव किया गया था। उत्तर प्रदेश बोर्ड में 12 वीं कक्षा के छात्रों को अकबरनाम पढ़ाया जाता था जो अकबर के शासनकाल का आधिकारिक इतिहास था। अकबरनाम के अलावा बादशाहनामा भी पढ़ाया जाता था जो मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल का इतिहास था। स्वतंत्रता के बाद उत्तर प्रदेश और देश में ऐसा इतिहास पढ़ाया गया जो हिंदू धर्म और उसके महापुरुषों को नीच दृष्टि से दिखाता हो लेकिन अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मानसिकता पर प्रहार कर उसे नष्ट करने का काम कर रहे हैं। सवाल यही है कि बच्चों को पढ़ाए जाने वाले इतिहास में अकबर और शाहजहां के शासनकाल के बजाय वीर शिवाजी या फिर महाराणा प्रताप का इतिहास क्यों नहीं पढ़ाया जा रहा था। नाम में ही तो सब रखा है कुछ लोगों कहते हैं कि नाम में क्या रखा है लेकिन कोई नाम किसी व्यक्ति अथवा शहर का परिचायक होता है। उसकी पहचान उसी नाम से होती है और नाम बदलने से उस शहर की पहचान, उस शहर की संस्कृति और उस शहर का धर्म तक बदल सकता है। उदाहरण के तौर पर प्रभु श्रीराम के जन्म स्थान का नाम अयोध्या से बदलकर फैजाबाद कर दिया गया। गौर करने वाली बात ये है कि जो व्यक्ति हिंदू धर्म के बारे में नहीं जानता होगा जिसे भारत के इतिहास के बारे में पता नहीं होगा वो फैजाबाद के नाम को लेकर अपनी क्या मानसिकता बना सकता है। इसका जवाब यह है कि अगर अयोध्या का नाम फैजाबाद रखा गया और कोई विदेशी भगवान राम के बारे में जानने के लिए भारत आता है उसे फैजाबाद नाम सुनने के बाद कैसा लगेगा ? उसके दिमाग में यह बात जरुर एक बार कौंधेगी कि हिंदुओं के ईष्ट देव माने जाने वाले प्रभु श्रीराम के जिले की पहचान अगर किसी आक्रमणकारी के नाम पर है तो हिंदू अपने भगवान के प्रति अपने दिलों में कितना सम्मान रखते हैं। यह सवाल इसलिए क्योंकि जब आप आपने ईष्ट देवता के स्थान का नाम असली नाम पर नहीं रख सकते तो आप प्रभु श्रीराम की भक्ति और सम्मान कैसे कर सकते हैं। यही वजह है कि माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या किया जो नाम युगों से हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में लिखा हुआ है। इसी तरीके से अपने देश की आजादी की लड़ाई और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाने वाले पंडित दीनदयाल के नाम पर मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम रखा गया। गोरखपुर के उर्दू बाजार का नाम बदलकर हिंदी बाजार रखा गया। इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज रखा गया जिसे पहले इसी नाम से जाना जाता था। अयोध्या,मथुरा और काशी को मिलेगी मिटी हुई पहचान 500 साल पहले अयोध्या में रामलला के मंदिर को तोड़कर वहां पर मस्जिद बनाई गई थी। 500 साल से चला आ रहा यह संघर्ष आखिरकार 22 जनवरी 2024 को खत्म हुआ जब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई और रामलला आखिरकार अपने घर में पहुंच गए। हिंदू अस्मिता के प्रतीक रामलला को यहां तक पहुंचने के लिए कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा। हिंदु बहूसंख्यक देश में रामलला ना जाने कितने साल टैंट में काटे। किसी भी विशेष धर्म बहुल देश में उनके ही भगवान को अपनी जगह पाने के लिए कोर्ट में मुकदमा लड़ना पड़े तो ऐसी त्रासदी केवल हिंदुस्तान में ही हो सकती है। हालांकि अयोध्या के बाद अब वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में भी माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और हिंदू धर्म के जनजागरण में लगे लोगों की वजह से ना केवल मस्जिद का सर्वे हुआ बल्कि ज्ञानवापी मस्जिद के गर्भगृह में कोर्ट के आदेश के बाद पूजा करने की भी अनुमति मिल गई। पूरी उम्मीद है कि अयोध्या की तरह से ही ज्ञानवापी मामले में भी तथ्य हिंदू पक्ष के पक्ष में ही जाएंगे। बात चाहें अयोध्या की हो या फिर ज्ञानवापी की जब तक केन्द्र और राज्य में ऐसी सरकारें ना हो जो समर्थन कर सके किसी भी मामले को आखिर तक ले जाने में कई व्यवधानों का सामना करना पड़ता है। मथुरा की मस्जिद में भी कोर्ट ने सर्वे के आदेश दे दिए हैं, जल्द ही मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद में भी सर्वे का काम शुरू होगा। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद हिंदू अस्मिता के प्रतीकों का दोबारा पुन:उत्थान करने की प्रक्रिया को तेज किया जा रहा है जिनको आक्रमणकारियों ने ढहाने का काम किया था। माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच अपने इतिहास और धर्म पर गौरव करने की चेतना का संचार किया है। केवल संचार ही नहीं धरातल पर जो काम उनके शासनकाल में हुए हैं वो उत्तर प्रदेश और हिंदू धर्म का सम्मान वापस लाने की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण कदम है। तमाम मोर्चों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने प्रदेश का विकास तो किया ही है उसके साथ ही उन धर्मस्थलों का भी पुन:उत्थान किया है जो समय की धूल में दबे हुए थे। फिर चाहें वो हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के ऐतिहासिक धर्मस्थल हों या फिर उत्तर प्रदेश के शासकों के किले और इमारतें हों जिन शासकों ने हमेशा देश और धर्म को अपने निजी स्वार्थों से सर्वोपरी रखा था।